Wo Din - Romance love story
मीरा - यार आपको हर बात का गलत ही मतलब निकालना ज़रूरी है क्या?
राज - हद हो तुम। पता नही कहा से कहा पहुँच जाती हो ख़यालो में। असलियत में ऐसा कुछ हुआ भी नही होता। लड़ना तो कोई तुमसे सीखे।
मीरा - तुम्हें ऐसा क्यों लगता है कि लड़कर ख़ुशी मिलती है मुझे।
यह सुनते सुनते राज की नज़र पड़ी कैलेंडर पे, और दिमाग़ में न जाने कैसे सब कुछ उड़ सा गया।
राज - अच्छा वो सब छोड़ो, बताओ खाने पे क्या बनाया है? नहीं मतलब खाने में क्या खाओगी?
राज के इस उलझन भरे लहज़े ने मीरा को सोचने पे मजबूर तो किया लेकिन वह थी गुस्से में और अक़्सर गुस्से में वो बचकानी हो जाती थी, जिसे समझाना मानो छोटे बच्चे को कड़वी दवाई खिलाना हो।
मीरा - मुझे नही खाना कुछ।
राज - तो ठीक है, अशोका की बिरयानी मंगा लेता हूँ लेकिन हाफ ही आर्डर करूँगा और साथ मे बूंदी का रायता भी। तुम्हारा मन हो तो थोड़ा चख लेना उसमे से। ठीक हैं?
मीरा - हा बिल्कुल।
ग़ुस्से में तिलमिलाई हुई बैठ गई जाकर। घोड़ी देर के लिए राज काम मे उलझा मालूम पड़ा तो मेरा ने कमरे से आवाज़ लगाई।
मीरा - फर्क़ भी नही पड़ता ना कि नाराज़ हूँ मैं?
इतना ही कहना था उसका की राज ने उसके हाथ मे लाकर पकड़ाया कॉफी का कप।
कॉफी को चखते हुए, मीरा फिर बोल पड़ी की तुम ये जो कूल बनने का नाटक करते हो ना, मत किआ करो। और गुस्सा आता है हमे।
राज बिना कुछ कहे बस हम्म हम्म करके उसकी बातें सुन रहा था और बाजू में आकर उसका सर अपने काँधे पे टिका लिया। और मीरा अपनी धुन में लगी ही हुई थी की अचानक door bell की आवाज़ आई।
राज बाहर गया, मीरा अंदर ही कॉफ़ी में लीन थी।
राज - बाहर आ जाओ मीरु।
(ये मीरु झगड़े के बाद वाले प्यार का हिस्सा था।)
मीरा बाहर आई तो बिरयानी रेडी थी।
मीरा - तुम्हे कैसे पता आज मेरा बिरयानी खाने का मन था।
राज - कैलेंडर देखा तो याद आया कि मुश्किल दिनों का आना हुआ है, तो सोचा आपकी पसंदीदा चीज़ो से आपका मन ठीक रखे।
ये कहते हुए राज ने अपनी मीरु को एक निवाला खिलाया और मीरा
वो बच्चों की तरह ख़ुश हो गई।
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