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Thursday, August 02, 2018

LOVE POETRY : TUMHE SAMAJH SAKTA HUN MAI..

LOVE POETRY: तुम्हे समझ सकता हूँ मैं…


बुरा लगता है
जब तुम बात नही कर पाती,
हां बुरा तो लगता है
जब तुम मेरा हाल नही समझ पाती,
आखिर क्यों न लगे बुरा
तुम भी नही समझोगी
तो और किससे उम्मीद करूं मैं,
पर ऐसा नही है कि
तुम्हारी मुश्किल नही समझता मैं,
ऐसा नही है कि
तुम्हारी परेशानी देख नही सकता मैं,
हर हाल में तुम्हारी हँसी चाहता हूं,
फिक्र ना करो
तुम जान के कुछ नही करती
इतना तो तुम्हे समझता हूं मै।


नौकरी की जदोजहद में
तुम सबको वक़्त देती हो,
खुद खाना नही खाती
पर सबकी शिकायते सुनती हो,
समझ सकता हूँ कितनी मजबूर हो तुम,
थकान से चूर
फिर भी
सबके काम करने को तैयार हो तुम,
अपनी सेहत का ख़्याल चाहे ना रखो
पर सबके हिस्से का काम कर देती हो तुम,
वक़्त चाहे खुद को ना दो
पर खुद को मार सबको वक़्त देती हो तुम,
जानता हूँ क्या क्या झेलती हो तुम
सुबह से शाम तक काम
घर आके भी जीना हराम
चैन से दो पल नसीब नही होते तुम्हे,
ये सब देख सकता हूँ मैं,
तुम्हारी मदद न भी कर सकूं
पर तुम्हे समझता हूं मैं ।


नाज़ है मुझे तुमपे
की तुम अपनी ज़िंदगी खुद बना रही हो,
किसी के मदद के बिना
अपनी हस्ती बना रही हो,
चाहे जो हो जाये
तुम मुझे हमेशा अपने साथ पाओगी,
हर हालत मे मुझे अपने नजदीक पाओगी,
फिक्र ना करना कभी
मैं हमेशा साथ दूंगा
हज़ार मुश्किलो में भी
मेरा हाथ अपने हाथ मे पाओगी,
तो हां बुरा लगता है जब तुम बात नही करती हो,
पर समझता हूँ मैं
की आखिर तुम दिन भर  क्या क्या करती हो,
कोई शिकवा नही है तुमसे
समझ सकता हूँ मैं
तुम काम,परिवार और जमाने
सबके बीच तालमेल जमा लिया करती हो,
हां जान मानता हूं तुम्हे मैं
तुम्हारी खुशी चाहता हूं मैं
तो जैसे चाहो रह सकती हो तुम
जिससे चाहे बात कर सकती हो तुम
ज्यादा कुछ नही पर
इतनी आजादी तो दे ही सकता हूँ मैं ।

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