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Saturday, July 21, 2018

POETRY ON FAMILY : MARNA HAI TO...


POETRY ON FAMILY: मरना है तो…


मैंने भी की थी मोहब्बत

बेइंतहा मोहब्बत

जिसकी हद न थी

खुद को तोड़ दिया

सिर्फ उस रिश्ते हो जोडने के लिए,

समय बिता

दिन महीने बन गए

और महीने साल

पूरे 6 साल बाद

उसने छोड़ दिया मूझे किसी और के लिए,

वो एहसास ऐसा था की

ऐसी जिंदगी से मौत भली

मौत को गले लगा लेता हूँ

फिर मां का चेहरा देखा तो लगा

उसके लिए मरु जो इश्क़ करता हो मुझ से

इसलिए ठान लिया

मरना है तो अपनी माँ के लिए ।

एक इश्क़ के लिए उसको कैसे छोड़ दूं

जिसने नौ महीने अपनी कोख में रखा

कैसे रुसवा करूँ उस मां को

जिसने मेरी सलामती के लिए व्रत रखा

कैसे तोड़ दुँ उस मां का दिल

जिसकी सुबह मुझे देख के होती है

जब देखेगी मेरा मरा हूँ तो

क्या बीतेगी उसकी दिल पे

तब सोच लिया मैंने की अब जीना है अपने लिए

अब मरना है तो सिर्फ अपनी माँ के लिए ।

वादा है तुझसे माँ

तेरा नाम रोशन करूँगा

तेरी हर ख्वाहिश पूरी करूँगा

तू घमंड कर पाए मुझपे

खुदको ऐसा बनाऊंगा

तू पूरी दुनिया है मेरे लिए

हाँ मां अब बस जीना है तेरे लिए ।

©ajasha

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